दलबदल के लिए बदनाम झारखंड में ये दल से दिल तो लगाते हैं लेकिन मौका मिलते ही दिल्लगी करने से भी बाज नहीं आते। झारखंड में राजनेताओं के मिजाज ही कुछ ऐसे हैं। दरअसल बिहार से ही इन्हें घुट्टी में दलबदल की शिक्षा जो मिली है। सुविधा और सहूलियत के आगे मौकापरस्त नेताओं के लिए दलीय प्रतिबद्धता का कोई मोल नहीं है।
राजनीतिक दलों के विचार से जुड़ाव और आस्था की बात तो सोचना भी बेमानी है। तभी तो एक वयोवृद्ध नेता ने जब कांग्र्रेस से सीधे भाजपा में एंट्री मारी तो वजह पूछने पर बोले- अपने लिए तो यह करियर है भाई साहब। मांग के लिहाज से हम दल बदल रहे हैं तो भविष्य देखकर ही ऐसा कर रहे हैं। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। मौका पाने पर, थोड़े पैसे बढऩे पर तो लोग ऐसे ही नौकरी बदलते हैं। शायद यह गलत भी नहीं है।
राजनीतिक दलों में विचारों के प्रति शुचिता और प्रतिबद्धता की जगह अवसरवादिता ने ली है। सभी दलों में ऐसे चेहरे शुमार हैं जो कभी दूसरे दलों का झंडा ढोते थे। अपने आका के नाम की कसमें खाते थे लेकिन दल बदलने का मौका नहीं चूके और आज उनकी किस्मत बुलंदियां छू रही है। पद मिला तो रुतबा भी बढ़ा और अब वे जिस दल में हैं उसका गुणगान कर रहे हैं।
2014 के विधानसभा चुनाव में झारखंड विकास मोर्चा के आठ विधायक चुनकर आए। इसमें से छह विधायकों ने पाला बदलकर भाजपा में शामिल होने का एलान कर दिया। पाला बदलने वालों में दो को राज्य सरकार में मंत्री का पद मिला जबकि तीन को बोर्ड-निगमों की अध्यक्षी मिल गई। दलबदल करने वाले विधायकों को स्पीकर कोर्ट ने भी वैध करार दे दिया। फिलहाल इससे जुड़े निर्णय को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है।
लोकसभा चुनाव के लिए फिलहाल प्रत्याशियों की घोषणा होना बाकी है। उम्मीदवारों के एलान के बाद सभी दलों में एक बार फिर आपाधापी मचेगी। कई नेता टिकट नहीं मिलने की स्थिति में बागी की भूमिका में नजर आएंगे। अगर उन्हें टिकट की संभावना नजर आई तो वे अपनी पुरानी पार्टी के खिलाफ ताल भी ठोकेंगे।
झारखंड प्रदेश कांग्र्रेस के अध्यक्ष डा. अजय कुमार ने राजनीति का ककहरा झारखंड विकास मोर्चा में सीखा। भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रहे डा. अजय कुमार इस दल की टिकट पर जीतकर संसद पहुंचे लेकिन मौका पाते ही कांग्र्रेस का दामन थाम लिया। कांग्र्रेस ने भी इन्हें हाथोंहाथ लिया। पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया। अब झारखंड प्रदेश कांग्र्रेस की कमान इनके हाथों में है।
जमशेदपुर के सांसद हैं विद्युत वरण महतो। इन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की राजनीति की। विधायक तक चुने गए लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा में एंट्री मारी। किस्मत ने साथ दिया और लोकसभा का चुनाव भी जीत गए। अब ये भगवा रंग में पूरी तरह रंगे नजर आते हैं।
झारखंड विधानसभा में सत्तारूढ़ दल के चीफ व्हिप राधाकृष्ण किशोर इससे पहले कांग्र्रेस में थे। पार्टी की दशा-दिशा खराब हुई तो इन्होंने पाला बदल लिया और अब ये भाजपा के आला नेताओं में शुमार हैं।
कोडरमा से लोकसभा सदस्य रवींद्र राय भाजपा में लौटकर आए हैं। बाबूलाल मरांडी ने जब नई पार्टी झाविमो बनाई थी तो वे उनके साथ चले गए थे। बाद में उन्होंने भाजपा में वापसी की और पिछला चुनाव जीता।
चतरा के पूर्व सांसद रहे नागमणि तो इतनी कूदफांद करते हैं कि पता ही नहीं चलता कि वे आखिरकार हैं किस दल में? हाल तक वे राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के साथ थे लेकिन उन्होंने जनता दल यूनाइटेड ज्वाइन करने का निर्णय किया है।